एक समय अमेरिका की पूरी दुनिया में तूती बोलती थी। हर देश अमेरिका की “गुड बुक्स” में रहना चाहता था। अमेरिका पूरी दुनिया की “मोरल पुलिसिंग” करता था।
आसान भाषा में अगर कहे तो, “जलवा था अमेरिका का”।
तालिबान की दी हुई डेडलाइन से एक दिन पहले ही अमेरिका ने छोड़ा अफगानिस्तान।
यह जो आप तस्वीर देख रहे है वो तस्वीर है अफगानिस्तान छोड़ते हुए अमेरिका के आखिरी सैनिक की है।
अफगानिस्तान अब तालिबान युक्त और अमेरिका मुक्त हो चुका है।
कुछ लोग इसकी खुशी मना रहे है जबकि इस समय पूरी दुनिया अब एक नई दहशत में जी रही है। अफगानिस्तान का क्या भविष्य होगा यह कोई नहीं जानता पर अनुमान सभी को जरूर है की भविष्य में क्या हो सकता है।
वैसे तो कोई देश अगर किसी दूसरे देश में अपने सैनिक भेजे तो वहां विरोध होना स्वाभाविक हैं पर अफगानिस्तान के नागरिकों के लिए अमेरिकी सैनिक किसी रक्षक से कम ना थे। क्योंकि अमेरिका के रहते तालिबान के कठोर शरिया कानून की जगह लोकतांत्रिक कानूनों ने ले ली थी।
वहीं जब अमेरिका ने वापसी की घोषणा की वैसे ही तालिबान ने पुरे अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है और हालात वापिस 20 साल पहले हो चुके है।
एक दिन पहले ही अफगानिस्तान छोड़ने से अमेरिका की इमेज खराब हुई है!
एक दौर वो था जब अमेरिका की कथित धमक पूरी दुनिया में थी और आज अमेरिका को पूरी दुनिया पानी पी पीकर कोस रही है।
दुनिया का अमेरिका को कोसना बनता भी है क्योंकि जिस प्रकार उसने अफगानिस्तान को छोड़ा है, उससे पूरी दुनिया में आतंकवाद फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया है।
अमेरिका के अंदर भी यही चिंता जाहिर की जा रही है कि तालिबान के वापिस अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने से 9/11 जैसे हमले फिर से हो सकते है।
सबसे बड़ा खतरा तो अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में छोड़े गए बिलियन डॉलर्स के हथियारों, विमानों से है।
अमेरिकी भले ही इन्हें काम न आने वाली हालत में छोड़ कर गया हो पर क्या यह हथियार किसी बाहरी सहायता से फिर से कामचलाऊ नहीं बनाए जा सकते है? चीन तो वैसे ही अफगानिस्तान को “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (Belt and Road Initiative) का हिस्सा बनाने के सपने देखने लगा है।
देखते है कि अफगानिस्तान का ऊंट किस करवट बैठेगा!
What’s the problem?
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अमेरिका ने अब मोल ली है फ्रांस की “सदी की सबसे बड़ी नाराजगी”।
अब अफगानिस्तान की वजह से अमेरिका की पूरी दुनिया में इज़्ज़त जा रही थी, तभी एक और दोस्त अमेरिका से नाराज़ हो गया। और वो भी कोई ऐसा वैसे दोस्त नहीं। यूरोप के दमदार देशों में से एक और यूएन सिक्योरिटी कौंसिल के परमानेंट मेंबर वाला दोस्त – फ्रांस।
विश्व ने कभी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि फ्रांस इस हद तक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से नाराज़ हो जायेगा की वो दोनों देशों से अपने एम्बेसडॉर्स को रिकॉल कर लेगा।
अब आप पूछेंगे कि क्या वाकई फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने एम्बेसडॉर्स को रिकॉल कर लिया है? जी हां! यह सच है।
आखिर फ्रांस और अमेरिका – ऑस्ट्रेलिया के बीच दरार पड़ी कैसे?
दरअसल हुआ यह कि ऑस्ट्रेलिया को चाहिए थी मॉडर्न पनडुब्बी और इसके लिए ऑस्ट्रेलिया फ्रांस से काफी लंबे समय से संपर्क में था। फ्रांस को पक्का यकीन था इस बिलियंस की यह डील उसकी ही है।
फिर बाद में अमेरिका आया। उसने UK और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर AUKUS नामक एक डिफेन्स अलायन्स बनाया और इस नए डिफेन्स अलायन्स के चलते ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सबमरीन डील अमेरिका से कर ली।
इस पर फ्रांस की तरफ से पहली बार वो वाक्य निकला जो शायद ही कभी किसी ने किसी फ्रेंडली देश के लिए बोले होंगे – हमारी पीठ में छुरा घोंपा गया है।
अब जब कोई आपके मुँह में जा रहे निवाले को अपने मुँह में ले जाए तो यही निकलेगा न।
अब आगे क्या होगा?
फ्रांस अब दुनिया में नए देशों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता है और हमारा प्यारा देश भारत सबसे पहले नंबर पर है।
होगा भी क्यों न। हमने हमेशा हर किसी का सम्मान ही किया है।
आप “अमेरिका के भविष्य” के बारें में क्या सोचते है, कृपया कमेंट करके जरूर बताइये।